वर्तमान के परे, अतीत में हैं मर रहे,
भविष्य का क्या हाल हो, ये सोच कर ही डर रहे,
अब की सूई को लिए,हैं तब को रोज़ गाड़ते,
वक़्त का ही खेल है,आख़िर मे ये ही मानते,
तुम जो एक दीवाल थे, मायूस हूँ मैं लाँघ के,
शायद ख़ुशी से ठहरता, फ़िर सोचता हूँ ऊबता,
अब क्या करूँ के प्रष्न से, मैं ज़िन्दगी में डूबता,
ज़िन्दगी बस चल रही, क्यों नहीं ये दौड़ती,
जब तेज़ हो रफ़्तार तो, मैं ख़ुद ही लगता हाँफने,
गड़ित के इक सवाल सा, मैं बेहिसाब उलझा हूँ,
ध्यान दे अगर कोई, मैं सबसे ज़्यादा सुलझा हूँ,
थक गया कभी तो क्या, हूँ उठ कर फ़िर से दौड़ता,
कैसे तुमने केह दिया, कि अब तो मैं बेजान हूँ,
सब ठीक हो जाएगा इक दिन, इस कथन से भरी दुनिया में सबकी साँस है,
ज़िन्दगी और मौत में बस इतनी ही तो आस है ।।
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