"इंसान"

मैं राम कहूँ तुम हुसैन हो जाना,
इसके बावजूद कोई रिश्ता पूछ ले,
तो बस साईं का नाम बताना,
याद रहे अपना भेस बदलते रहना,


कभी होली में हिन्दू तोकभी मोहर्रम में मुसलमान हो जाना,
दिवाली में गीता और ईद में क़ुरान हो जाना,
सुबह की आरती और शाम की अजहां हो जाना,
कभी माथे का टीका तो कभी नमाज़ हो जाना,
मैं गंगाजल छिड़कूं तुम वज़्ज़ु का नाम हो जाना,
मैं शरद की खीर तुम मीठी सेवइयां हो जाना,


मैं कभी बेईमानी करूँ तो तुम ख़ुलूस का पाठ पढ़ाना,
मैं मंदिर की नींव तुम हाजी वारिस की मज़ार हो जाना,
कभी मेरे साथ कैलाश ज़रूर आना,


मगर याद रहे,
मुझे अपने साथ मदीने भी ले जाना,
इस तरह मैं हज और तुम चारों धाम हो जाना,
कभी मैं जलकर राख हो भी जाऊँ,
तो तुम माँ को अकेला मत छोड़ना,


ऐसा करना उसकी गोद में क़यामत तक के लिए सो जाना,
मगर याद है न भेस बदलते रहना,
फिर जब किसी दिन बात शहर की शान पे आ जाए,
या किसी गरीब की जान पे आ जाए,
या बहनों की आन पे आ जाए,
तो सारे लिबाज़ फेंक कर सबसे पहले एक इंसान हो जाना ।।



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-हिमांशु सिंह✍