Lockdown day 25 , जी हाँ आज लॉकडाउन को 25 दिन बीत चुके हैं। इन् 25 दिनों में क्या क्या हुआ ये तो सभी भली भाति जानते ही हैं, हाँ जानते ही होंगे आखिर घर बैठे काम ही क्या है जो दुनिया की खबर ना ही रख रहे हो। फिर भी दोबारा ज़िक्र करना तो बनता ही है क्यूंकि इंस्टाग्राम , फेसबुक और व्हाट्सप्प का जमकर इस्तेमाल करने के बाद , हर तरह के चैलेंज एक्सेप्ट करने के बाद (जिसमे कुकिंग , ड्राइंग , डांसिंग, सिंगिंग , मेकअप, साड़ी , फलाना और ढिमाका चैलेंज शामिल हैं ), Netflix और Amzon की नयी सीरीज़ निपटाने के बाद (जिसके बाद आँखों के नीचे काले घेरो का दायरा काफी बढ़ चूका है ) अपने अपने घरो की जमकर सफाई करने के बाद , और आखिर में वो दो अहम काम जो कोरोनावायरस का प्रकोप कम करने के लिए सीधे प्रधान मंत्री द्वारा दिए गए थे 1. डॉक्टरों और पुलिसकर्मियों के लिए तालियां बजाना 2 . दिए जलाना (इसकी कुछ खास वजह समझ तो नहीं आयी शायद मनोरंजन के ख्याल से ) ख़ैर ये दोनों ही कार्य जो सीधे देश के प्रधान मंत्री ने लाइव आकर देश की जनता को दिए थे , जनता ने भी अपनी तरफ से बड़े ही जोशो खरोश से किये। इन सब के बाद अब lock down 2.0 में कुछ खास करने को बच ही नहीं है , इसीलिये अब ये ब्लॉग लिखा जा रहा है।
ख़ैर , लॉकडाउन के कारण पूरा देश एक तरह से थम गया है और जानकार मानते हैं कि इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना स्वाभाविक है। इससे नौकरियों पर असर होगा. नुक़सान के कारण कंपनियां बंद हो सकती हैं, कामगारों को निकाला जा सकता है. इंटरनेशनल लेबर यूनियन की ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि कोरोना वायरस के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ लोगों की ग़रीबी और बढ़ जाने का ख़तरा है. साथ ही 19 करोड़ 50 लाख नौकरियों पर भी ख़तरा मंडरा रहा है. ये नुक़सान कितना बड़ा होगा ये इस पर निर्भर करेगा कि कोरोना वायरस को दुनिया कब तक हरा पाती है और देश में लॉकडाउन कब तक बना रहता है.
मैंने Economics पढ़ते वक़्त एक लाइन पढ़ी थी "Poor Get Poorer When the Rich Get Richer", development और Indian economy अक्सर ये दोहराई जाती रही है। ज़्यादा समझदार तो मैं हूँ नहीं , लेकिन मैंने समझा है की देश के हालात ख़राब होते हैं , असल परेशानी गरीब को ही होती है. मौजुदा हालात के हिसाब से देखे तो कितना बड़ा अंतर है , जहाँ एक तरफ कटरीना कैफ बर्तन रही हैं तो वही मज़दूर बर्तन लिए खाने का इंतज़ार कर रहे हैं। एक तरफ लोग घर पे वक़्त गुज़ारने के नए नए तरीके तो कुछ लोग अपने घर वापस जाने के लिए परेशान हैं। कितना फर्क नज़र आता है जब लोग कई दिनों की भूख से परेशान हैं और हम यहाँ रोज़ नई - नई रेसिपी बना बना कर शेफ की उपाधि पा चुके हैं। कई दिनों से एक जगह फसे लोगों की बस यही गुहार है की अपने गाँव अपने घर चाहे मर जाएं , वही लोग घर पे पिज़्ज़ा आर्डर करके , मुसीबत बुला हैं। कुछ लोगों को तेज़ी से बढ़ते केस फ़िक्रमंद किये हैं, तो वही कुछ लोग LOCKDOWN के बढ़ते दिनों से घबरा रहे हैं। ये फर्क तो हमेशा से रहा है और अब तो शायद बढ़ता ही जाएगा। खासतौर पर उस देश में जहाँ का 73 % धन सिर्फ 1 % आबादी के पास हो। जहाँ तक मेरा मानना है की गरीबी से बड़ी परेशानी तो ये है की देश में इससे संबोधित ही नहीं किया जा रहा क्यूंकि ढेरो योजनाएं बनाने के बावजूद भी, मदद उन तक पहुंच ही नहीं पाती जो इसके असल हक़दार है , जैसे केंद्र सरकार ने ग़रीब परिवारों की मदद के लिए महिलाओं के जनधन खाते में तीन महीने तक 500 रुपए भेजने की घोषणा करी , 500 रुपए में हम और आप एक हफ्ते गुज़ारा कर लें तो बड़ी बात है , मुफ्त राशन के लिए राशन कार्ड का अनिवार्य होना एक और बड़ा सर दर्द है और भी ऐसी सरकारी मदद बस ऊँट के जीरे के सामान हैं, जब की लॉकडाउन के एलान से पहले, देश के इस सबसे कमज़ोर तबक़े की मदद के लिए आर्थिक पैकेज और उसे लागू करने के संसाधनों का जुगाड़ कर लेना चाहिए था। अहम सवाल ये भी है की अब तक इस अमीर-गरीब की गहरी खाई को पाटने के लिए क्या किया गया पर यह सवाल अब क्यों ? सुध लेनी की कोशिश क्यों नहीं करी , क्या हमे पता है की बीते वर्षों से जीडीपी के आंकड़े क्या कह रहे हैं ? जवाब शायद किसी के पास न हो बीते कुछ वक़्त से तो न्यूज़ रूम भी बस हिन्दू - मुस्लिम की डिबेट करने में लगी हुई है और राजनीति तो बस अपनी- अपनी पार्टियों को बेहतर बताने में मग्न है और सवाल करने वाले हम अभी तक समझ ही नहीं पा रहे की कब किस मुद्दे पर बोलना है और कुछ सालों से बस घूम फिर के हर मुद्दा हिन्दू - मुस्लिम की एक डिबेट पर आकर ख़त्म हो जा रहा।
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